Book Title: Arhat Dharm Prakash
Author(s): Kirtivijay Gani, Gyanchandra
Publisher: Aatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३० ) अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय, सधर्मी भक्ति, दीन-दुखियों को यथाशक्ति दान, सामायिक, प्रतिक्रमण, तप-जप और नमस्कार मंत्र का स्मरण इत्यादि नित्यकर्म श्रद्धापूर्वक करने चाहिए। इन आचारों को पालन करनेवाला व्यक्ति भी जैन कहलाता है I और, यदि कुछ भी नहीं हो तो परमात्मा जिनेश्वरदेव ने जो उपदेश दिया है उन सर्वज्ञ-कथित तमाम वचनों पर श्रद्धा रखना । इस प्रकार जिन वचन पर श्रद्धा रखनेवाला भी जैन कहलाता है । ऊपर कही हुई विधि अनुसार क्रिया करनेवाला धीरे-धीरे कर्म के भार को हलका कर सद्गति प्राप्त करता है और अन्त में शिवपुरी के अपूर्व आनंद का अनुभव करता है । केवल इतने ही विवरण से समझ में आ सकता है कि, जैन धर्म कितना व्यावहारिक है । संसार के तमाम प्राणी जैन-धर्म को अंगीकार कर, उसे आचरण में ला सकते हैं । कितने ही इस बात को नहीं समझनेवाले अनभिज्ञ बिना सोचे एकदम बोल उठते हैं कि, जैन धर्म अव्यावहारिक है; परन्तु उन लोगों को पता नहीं कि, जैन-धर्म के सिद्धान्त कितने विशाल हैं, उनकी कितनी उच्चता है और चाहे जैसा अदना से अदना प्राणी अल्प या अधिक परिमाण में उनका आचरण कर सकता है । अन्त में जिसकी जैन-धर्म के प्रति श्रद्धा हो वह भी जैन कहलाता है । जैन धर्म के सिद्धान्तों को विशेष रूप से समझने के लिए उस उस विषय की अनेक पुस्तकों का श्रवण पठन, चिंतन-मनन करना चाहिए । जैन सिद्धांत के अकेले कर्म-दर्शन के ऊपर हो कितने विशालकाय ग्रंथ आज भी मौजूद हैं। ज्योतिष-विज्ञान, कर्म-सिद्धांत, आत्मवाद, परमात्मवाद, आगमज्ञान, न्याय, व्याकरण, छंद, अलंकार, तर्क, आचार, For Private And Personal Use Only

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