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(१०) देशावगाशिक-व्रत
साल भर में कम-से-कम एक दिन तो आरंभ समारंभ का सर्वस्व त्यागकर तपश्चर्यापूर्वक दस सामायिक करना ।
( ११ ) पौषध-व्रत
यदि आजीवन साधु-जीवन स्वीकार न किया जा सकता हो तो भी साधु - जीवन के अभ्यास के लिए साल भर में कम से कम एक दिन तो उपवास आदि तपश्चर्यापूर्वक पौषधत्रत को अंगीकार करना ही चाहिए । इस व्रत के समय आरंभ- समारंभ त्यागकर १५ या १४ घंटे तक समभावपूर्वक ज्ञान ध्यान आदि क्रियाकांड में मग्न रहना चाहिए ।
(१२) अतिथि संविभाग- व्रत
वर्ष में कम-से-कम एक दिन २४ घंटे तक चौविहार उपवासपूर्वक पौषध करना और पौषध के दूसरे दिन एकाशन करना । एकाशन के समय त्यागी गुरु- महाराज को भोजनादि बहराना, उस समय वे जो वस्तु ग्रहण करें उसी वस्तु का उपयोग करना । यदि महाराज का योग न हो तो अपने सधर्मीबन्धु को करते समय वह जिन वस्तुओं का उपयोग करें, उपयोग करना ।
किसी कारणवश साधु भोजन कराना, उन्हीं वस्तुओं का स्वयं
भोजन
उपर्युक्त इन बारह व्रतों का जो पालन कर सकता हो, उसे अवश्य इन व्रतों का पालन करना चाहिए, जो बारह व्रतों का पालन करने में असमर्थ हो उसे अपनी सामर्थ्य अनुसार आसानी से पाले जा सकें उतने व्रतों का पालन करना चाहिए । एक भी व्रत का ग्रहण करनेवाला व्रतधारी जैन कहलाता है ।
और, जो एक भी व्रत का पालन नहीं कर सकते उन्हें सदैव प्रभुपूजन, दर्शन, गुरुवंदन, अभक्ष्य, कंदमूल तथा रात्रि भोजन का त्याग करना,
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