Book Title: Arhat Dharm Prakash
Author(s): Kirtivijay Gani, Gyanchandra
Publisher: Aatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir

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Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधु-धर्म का पालन करना सामान्य व्यक्ति के लिए अति कठिन है । यह मार्ग अत्यंत दुष्कर है । विरल आत्माएं ही इस उच्चकोटि के मार्ग की आराधना कर सकती हैं। जो आत्माएँ साधु-धर्म का पालन करने में असमर्थ हों, उनके लिए दूसरा मार्ग श्रावक-धर्म अर्थात् गृहस्थ-धर्म बताया गया है। सम्यक्त्व सम्यकत्व अर्थात् सच्ची दृष्टि, सच्ची मान्यता, तत्त्वों के प्रति पूर्ण श्रद्धा अर्थात् परमात्मा के वचन पर पूर्ण श्रद्धा, देव के प्रति देवत्व-भावना, गुरु के प्रति गुरुत्व-भावना, और धर्म में धर्मबुद्धि का होना सम्यक्त्व कहलाता है। १. रागद्वेष आदि दोषरहित वीतराग, सर्वज्ञ, त्रैलोक्य-पूजित, यथार्थ तत्त्वों के उपदेष्टा अरिहंत भगवान् को ही परमात्मा रूप से मानना। २. अहिंसा आदि पाँच महाव्रतों को पालन करनेवाले, गोचरी अर्थात् मधुकरी-वृत्ति से आहार लेनेवाले और सर्वज्ञ परमात्मा-प्ररूपित धर्म का यथार्थ उपदेश देनेवाले साधुओं को ही गुरु-रूप से मानना । ३. दुर्गति की ओर जानेवाले जीवों को बचानेवाला मार्ग 'धर्म' कहलाता है । वह धर्म दयामूलक है । सर्वज्ञ परमात्मा-द्वारा प्ररूपित धर्म को ही वास्तविक धर्म मानना चाहिए । उपर्युक्त मुदेव, मुगुरु और सुधर्म पर जिसको पूर्ण श्रद्धा होती है, वह 'जैन' कहलाता है। For Private And Personal Use Only

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