Book Title: Arhat Dharm Prakash
Author(s): Kirtivijay Gani, Gyanchandra
Publisher: Aatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मा आधुनिक युग में अनेक व्यक्ति धर्म की आराधना में परमात्मा की भक्ति-सेवा-उपासना में शिथिल हो गये हैं। उसका मुख्य कारण यह है कि, वे आत्मा का अस्तित्व स्वीकार नहीं करते। उन्हें आत्मा के अस्तित्व के विषय में संदेह है और जिसे एक बार आत्मा के विषय में संदेह हो जाता है, वह फिर पुण्य, पाप और परलोक जैसी चीजें तो क्यों मानने लगेगा ? अनात्मवादी की दलील यह है कि, दूसरी वस्तुएँ जैसे आँखों से दीख पड़ती हैं, वैसे आत्मा नहीं दिखाई देती और जो वस्तु दृष्टिगोचर नहीं होती, उसे किस प्रकार माना जाय ? उसके जवाब में ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि, आत्मा का प्रत्यक्ष सर्वज्ञ द्वारा होता है । आत्मा स्वयंसिद्ध वस्तु है; परन्तु अरूपी होने से वह हमें दिखाई नहीं देती। पवन को हम कहाँ देखते हैं ? फिर भी यदि कोई पूछे कि पवन है या नहीं ? तो कहना होगा कि पवन है; क्योंकि वृक्ष के पत्तों के हिलने आदि से पवन का कार्य दृष्टिगोचर होता है। इसी प्रकार यदि कोई पूछे कि हमारे पितामह और हमारी हजारवीं लाखवीं पीढी हुई या नहीं ? तो उसका भी जरूर उत्तर मिलेगा कि-हाँ हुई। और, उसके बाद फिर दूसरा प्रश्न पूछा जाय कि तुम्हारी हजारवीं या लाखवीं पीढ़ी कहाँ दिखाई देती है । उसका तो कुछ नामो-निशान भी नहीं है । तब दृष्टिगोचर नहीं होने पर भी हम अपनी हजारवीं-लाखी पीढ़ी को भी मानते हैं, क्योंकि हमारा अस्तित्व है, उसीसे हमारी पीढ़ियों की भी सिद्धि होती है । क्या वृक्ष का मूल भी कहीं दिखाई देता है ? फिर भी वह है या नहीं इसके उत्तर में कहना होगा कि, मूल है । मूल के बिना For Private And Personal Use Only

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