Book Title: Arhat Dharm Prakash
Author(s): Kirtivijay Gani, Gyanchandra
Publisher: Aatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९ ) स्पश तक नहीं करते, यदि भूल से कदाचित अकस्मात् स्त्री के वस्त्र का भी स्पर्श हो जाय, तो उन्हें प्रायश्चित्त लेना पड़ता है। जिस मकान में स्त्री रहती हो, वहाँ वे निवास भी नहीं करते । रात्रि के समय उनके निवास स्थान में स्त्रियों के लिए जाने-आने का खास प्रतिबन्ध होता है । वे नैष्ठिक ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। जैन-साधु गाड़ी, घोड़ा, साइकिल, मोटर, विमान या किसी भी वाहन का उपयोग नहीं करते। देश-देशांतर में वे पाद-विहार कर के जाते हैं। अनेक कष्टों का सामना कर गाँव गाँव और नगर-नगर में समस्त प्रजा को बिना किसी भेद-भाव के आत्महित का उपदेश देते हैं । किसी भी प्रकार के स्वार्थ के बिना जनता को कल्याण का सच्चा रास्ता बतलाते हैं। __छाता-जूता-खड़ाऊँ इत्यादि का उपयोग वे नहीं करते तथा उन्हें किसी वस्तु का व्यसन भी नहीं होता। सदैव ज्ञान-ध्यान, शास्त्र-चिंतन और पठन-पाठन में ही काल व्यतीत करते हैं । वे भोजन भी स्वयं नहीं पकाते । मधुकरी-वृत्ति से प्रत्येक घर भिक्षागोचरी लेने जाते हैं। निर्दोष आहार-पानी ग्रहण करते हैं । गृहस्थ लोग अपने श्रेय के लिए उन्हें सर्वस्व समर्पण करते हैं । परन्तु, ये त्यागी साधु उन्हें जितनी आवश्यकता हो उतनी ही वस्तु ग्रहण करते हैं। रात्रि को वे अपने पास कोई भी खाने-पीने की वस्तु नहीं रखते । ये अपने सिर के बाल भी प्रसन्नतापूर्वक हाथ से खिंच डालते हैं। शरीर के ऊपर के ममत्व को दूर करने के लिए वे ऐसे कठिन परिपह भी आनंद से सहन करते हैं। सूर्योदय के बाद दो घड़ी (याने ४८ मिनिट) के बाद ही यदि कोई वस्तु मुँह में डालनी हो तो डालते हैं। और, सूर्यास्त के बाद आहारपानी का बिलकुल उपयोग नहीं करते। चाहे जैसी गर्मी हो वे रात्रि के समय प्यास लगने पर भी पानी नहीं पीते। ऐसी कठिन प्रतिज्ञाओं का पालन जैन-साधु सहर्ष करते हैं। For Private And Personal Use Only

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