Book Title: Arhat Dharm Prakash
Author(s): Kirtivijay Gani, Gyanchandra
Publisher: Aatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४ ) लकड़ी में अग्नि और दूध में घी दिखाई न देने पर भी उनके अस्तित्व को स्वीकार करना पड़ता है, उसी प्रकार शरीर में आत्मा का अस्तित्व सिद्ध है। जब आत्मा अपने स्वरूप को पहचान लेती है तब वह धर्माचरण से लीन होती है और जब कर्मों का भेदन कर डालती है, तब जन्म-मृत्युरहित बनती है । वह अमर आत्मा मोक्ष के स्थान में शाश्वत और सतत अखंड सुखोपभोग करनेवाली अनन्त सुखी बनती है। इस प्रकार आत्मा अनेक प्रमाणों से भी सिद्ध है। आत्मा स्वयं वेद्य होने से भी सिद्ध वस्तु है, इस लोक को छोड़कर परलोक में जानेवाली है। इस शरीर में भी वह परलोक से आयी है और आयुष्य-कर्म समाप्त होने के बाद यह शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में जानेवाली है, यह बात भी सुनिश्चित है । आत्मा अमर, अखंड और अविनाशी है, फिर भी कर्म के.अधीन होकर उसे जन्म-मरण धारण करने पड़ते हैं, संसार में परिभ्रमण करना पड़ता है, दुखी होना पड़ता है, अन्त में कर्मों का नाश होने पर वह अपने मूल रूप में आकर पूर्ण बनती है। परमात्मा-स्वरूप बनती है । वैसी पूर्ण बनी हुई, आत्मा को परमात्मा कहते हैं । For Private And Personal Use Only

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