Book Title: Arhat Dharm Prakash
Author(s): Kirtivijay Gani, Gyanchandra
Publisher: Aatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir

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Page 38
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ईश्वर की उपासना जैन-दर्शन पूर्ण आस्तिक दर्शन है। जैन लोग जिस प्रकार ईश्वर की उपासना, सेवा, भक्ति करते हैं, वैसी उपासना शायद ही कोई करता होगा। वे परमात्मा की भक्ति में अपना तन, मन और धन सभी समर्पित कर देते हैं। यह बात तो जैन मंदिरों को देखने मात्र से सहज ही स्पष्ट हो जा सकती है। परमात्मा की सेवा से आत्मा परमात्मा बनती है। भ्रमर का ध्यान करते रहने से जैसे कीट भ्रमर बन जाता है, वैसे ही परमात्मा के ध्यान से आत्मा परमात्मा बनती है। आत्मा स्कटिक-जैसी निर्मल है । जिस प्रकार स्फटिक रत्न के पास जिस रंग की वस्तु रखी जाती है, उसी रंग का प्रतिबिम्ब उसमें पड़ता है--वह वैसे रंग का मालूम होता है-उसी प्रकार आत्मा को जैसे-जैसे संयोग प्राप्त होते हैं, वैसी वह बन जाती हैं । राग-द्वेष या मोह के निमित्त प्राप्त होने पर आत्मा रागी, द्वेषी अथवा मोही बनती है तथा अच्छे संयोग प्राप्त होने पर उसमें अच्छी भावनाएँ उत्पन्न होती हैं। इसलिए, संसारी आत्माओं के लिए अच्छे निमित्तों और अच्छे आलंबनों की सर्वप्रथम और शीघ्रातिशीघ्र आवश्यकता है। और, इसके लिए सर्वोच्च और सुन्दरतम निमित्त परमात्मा की प्रशमरस से परिपूर्ण शांतमुख मुद्रा और वीतरागता का प्रत्यक्ष अनुभव करानेवाली चित्ताकर्षक मनोहर मूर्तियाँ हैं । इन वीतराग परमात्मा की मूर्ति के दर्शन, पूजन और सेवा-भक्ति से आत्मा वीतराग दशा का अनुभव करती है। परमात्मा को किसी वस्तु की अपेक्षा नहीं होती; परन्तु संसार की मोहमाया से मुक्त होने के लिए भक्तजन तन, मन और धन उनके चरण कमलों For Private And Personal Use Only

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