Book Title: Arhat Dharm Prakash
Author(s): Kirtivijay Gani, Gyanchandra
Publisher: Aatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२ ) वृक्ष, पत्ते, फूल, फल इत्यादि कैसे सम्भव हो सकते हैं । वृक्ष-रूपी कार्य का किसी कारण के बिना संभव नहीं हो सकता; इसलिए हम मानते हैं कि उसका कारण मूल होना आवश्यक है। इस प्रकार हम कार्य से उसके कारण को समझ सकते हैं । इसी तरह आत्मा का कार्य भी जीवित मनुष्य में दृष्टिगोचर होता है। जीवित मनुष्य जिस प्रकार हिलता डुलता है, क्रिया करता है, चेष्टा करता है, विचार करता है, भूत-भविष्य सम्बन्धी उहा-पोह करता है, भूत-भविष्य सम्बन्धी विचार और कल्पनाएँ करता है; ये सब क्रियाएँ मृतक व्यक्ति में नहीं होती । एक मिनट पहले जिस जीवित मनुष्य में हिलना-चलना आदि सब क्रियाएँ दृष्टिगोचर होती थीं, मरने के बाद तुरन्त एक क्षण में मृतक व्यक्ति निष्क्रिय हो जाता है। इस प्रत्यक्ष उदाहरण द्वारा हम समझ सकते हैं कि, जीवित मनुष्य में कार्य आत्मा का है और मृतक में से आत्मा चली गयी; इसलिए तब उसे कुछ भी प्रतीत नहीं होता। इस प्रकार आत्मा का कार्य हमें प्रत्यक्ष दिखाई देता है। इस दृष्टांत द्वारा हम आत्मा को अच्छी तरह समझ सकते हैं। __शरीर आत्मा का घर है। घर में रहनेवाला घर से भिन्न होता है । घर या प्रासाद गिर जाये अथवा किराये के मकान की अवधि पूरी होने पर उस मकान में रहनेवाला घर छोड़ या उसे खाली करके दूसरी जगह रहने लगता है, उसी प्रकार इस शरीर में आत्मा के रहने की अवधि समाप्त होने पर आत्मा कर्म के अनुसार दूसरे स्थान पर बाँधे हुए आयुष्य के अनुसार-जाता है। दूसरे जन्म में जाने पर वहाँ दूसरा शरीर धारण करता है । वहाँ पर भी फिर अवधि पूरी होने पर तीसरे जन्म में आत्मा जाती है । वहाँ तीसरा शरीर धारण करती है। इस प्रकार अनादि काल से कर्मानुसार जन्म-मृत्यु की परम्परा चलती रहती है। जिस प्रकार तलवार से म्यान भिन्न होती है, उसी तरह देह से भी आत्मा भिन्न है। जिस प्रकार दूध में घी विद्यमान होने पर भी घी दिखाई For Private And Personal Use Only

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