Book Title: Arhat Dharm Prakash
Author(s): Kirtivijay Gani, Gyanchandra
Publisher: Aatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकेला धम रहा, जो समय के सैकड़ों उतार-चढ़ाव को देखकर भी इसी भूमि में फलता-फूलता रहा। उसकी इस स्थिरता का कारण निश्चय ही उसका साहित्य, उसकी विचारधारा, उसकी कर्मठता और उसका दर्शन है। अतः यदि कोई व्यक्ति सचमुच भारत के सांस्कृतिक इतिहास का अध्ययन करना चाहे तो उसके लिए जैन-दर्शन और साहित्य का अध्ययन, अनिवार्य होगा। पर, एक तो अपनी विशालता के कारण और दूसरे प्राचीन ग्रन्थ संस्कृत तथा प्राकृत में होने के कारण, साधारण व्यक्ति के लिए उससे परिचय प्राप्त करना थोड़ा कठिन कार्य है । अतः आज सहस्रों ऐसी सुलभ और सरल प्रामाणिक पुस्तकों की आवश्यकता है, जिसके द्वारः ज्ञान के गूढ़ रहस्य जन-साधारण तक पहुँच सकें। मेरे पूज्य मित्र पंन्यास जी श्री कीर्तिविजय गणिवर जी महाराज की यह कृति वस्तुतः इसी लक्ष्य से लिखी गयी है। उनमें जहाँ एक ओर शास्त्र के अभ्यास के फलस्वरूप विद्वत्ता है, वहीं साधु होने के फलस्वरूप परम्परा ज्ञान भी है। अतः पुस्तक अति संक्षिप्त होते हुए भी, जहाँ तक जैनदर्शन अथवा सिद्धान्त का प्रश्न है, अपने छोटे-से-छोटे, विवरण तक में पूर्ण प्रामाणिक है । उन्हें पढ़-समझ कर पाठक कह सकता है कि, अमुक बात ऐसी है और उसके कहने पर कोई भी विद्वान् उंगली नहीं उठा सकता । ____ पुस्तक हिन्दी में प्रकाशित हो रही है, यह हिन्दी का सौभाग्य है। हिन्दी में श्वेताम्बर-साहित्य नगण्य है और जो है भी, उससे परिचय बहुत कम लोगों को है । प्रस्तुत पुस्तक निश्चय ही इस कमी को दूर करेगी और लोगों को जैन-दर्शन समझने में सहायक होगी। दफ्तरीबाड़ी, चिंचोली, मलाड, बम्बई ६४। --ज्ञानचन्द चैत्र शुक्ल १३, सं० २०१६ वि० विद्याविनोद For Private And Personal Use Only

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