Book Title: Aptavani Shreni 02
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 13
________________ दूसरा, दादाश्री बहुत ही हँसी-मज़ाक में लेकिन गहन ज्ञानगर्भित तरीके से वैराग्य उत्पन्न करवाएँ, हमेशा वैसी बात करते हैं : दादाश्री : बहन, कितने बच्चे हैं? प्रश्नकर्ता : चार । दादाश्री : तो पिछले जन्म के बच्चे अभी कहाँ हैं? संसार शब्द, वह मूल संसरण पर से आया हुआ शब्द है। जो निरंतर परिवर्तनशील है-उसका नाम संसार, और हर एक जीव इस संसरण मार्ग पर निरंतर चलता ही रहता है और ऊर्ध्वता को प्राप्त करता है । सिर्फ मनुष्यगति में आने के बाद ही जीव के लिए वक्रगति भी उत्पन्न होती है, क्योंकि यहाँ मनुष्यजन्म में कर्ताभाव, असीमित मन, बुद्धि उत्पन्न होते हैं और साथ ही यह भी लाभ है कि इस मनुष्यगति में से जीव मुक्तिधाम को, मोक्ष को प्राप्त करता है । संसार का वर्णन ‘ज्ञानीपुरुष' सादी, सुंदर भाषा में सिमिली देकर समझाते हैं : संसार, वह घोड़े जैसा है । संसारी लोग घोड़े पर बैठे हुए सवार जैसे हैं। घोड़े को दुर्बल जानकर सवार घोड़े पर साँस रोककर सिर पर घास का भार लेकर बैठता है, लेकिन अंत में भार तो घोड़े पर ही जाता है । उसी तरह आप सब भी अपना बोझा संसाररूपी घोड़े पर ही डालो, दिमाग़ पर बोझा किसलिए? और कुल मिलाकर भार तो घोड़े पर ही जाता है। संसारवृक्ष को निर्मूल करने में सिर्फ 'ज्ञानीपुरुष' ही समर्थ हैं। वह किस तरह? अन्य किसी चीज़ को किंचित् मात्र भी स्पर्श किए बिना 'ज्ञानीपुरुष' संसारवृक्ष की मूसला जड़ में चुटकीभर दवाई डाल देते हैं, जिससे अपनेआप वृक्ष सूखकर निर्मूल हो जाता है। सत्देव कौन ? मंदिर या जिनालय में मूर्ति के रूप में रखे हुए हैं, वे? ना। वे तो ‘भीतरवाले' यानी कि अंदर विराजमान परमात्मा ही सत्देव हैं। जब तक वह परमात्मादर्शन नहीं हो जाते, तब तक मंदिर या जिनालय के सत्देव को मान्य रखना चाहिए। 12

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