Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 17
________________ आभार यह धरती, चाँद तारे, नक्षत्र, मही हरे भरे वृक्ष, पेड-पौधे, कलकल करती नदियां, धरती के पैर प्रशासन करता सागर, जिस पर बहती सुन्दर बयार, यह सब प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य है। हम इसके साहचर्य से आत्मरमण में आने का उपक्रम कर रहे हैं। मेरे पिता श्री प्रसभचंदता थाडीवाल एवं मामा श्री प्रेमराजसा मेहता जिनके यहाँ मैं दत्तक आया हूँ जिनकी गोदी में बैठकर बड़ा हुआ हूँ और जिनकी कृपा से, करुणा, दया, स्नेह, प्रेम, वात्सल्य आदि जीवन मूल्यों की प्राप्ति हुई है, उनका आभार शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता। पूज्य गुरूदेव श्री हस्तीमलजी म.सा. जिनकी देव तुल्य अद्भुत कृपा को मैं जीवन पर्यन्त नहीं भूल सकता। मेरे गुरू युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी म.सा., गुरूणी मैय्या श्री उमराव कुंवरजी म.सा. आदि सती वृन्द जिनकी प्रेरणा मेरे जीवन का सम्बल बनी। मेरे गुरुवर्य सर्व श्री पुखराजजी व्यास, श्री हरिशचन्द्रजी लाटा आदि शिक्षक वृन्द जिन्होंने अक्षर ज्ञान के साथ बहुमूल्य शिक्षाएँ प्रदान की, वे मेरे हृदय में बसी है। इस पुस्तक की पाण्डुलिपी तैयार करने में डॉ. नीतेशजी जैन, डॉ. नवलसिंहजी नरवाल, डॉ. देवकिशनजी राजपुरोहित, डॉ. पाटनी जी आदि साहित्यकारों का मुझे पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ है। अन्य साहित्यकारों ने इस पुस्तक में अपनी समीक्षा आदि लिखी है, उनका मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। मेरे सुपुत्र श्री नेमराज मेहता ने दस कृति के प्रकाशन में जो भावनात्मक सहयोग दिया है, वह सराहनीय है। प्राकृत भारती के सभी कार्यकर्ताओं ने इस कृति के मुद्रण प्रकाशन में सहयोग दिया है, वे धन्यवाद के पात्र है । अन्त में श्री डी. आर. मेहता साहब ने इसका प्रकाशन कराकर इस कृति को सार्व सुलभ पठनीय बनाया है अतः उन्हे धन्यवाद। इस कृति को तैयार करने में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जिन-जिन महानुभावों का सहयोग मिला है, उन सब का आभार । पुन: उस अव्यक्त महाशक्ति को अनन्त प्रणाम् । 16 डॉ. जतनराज मेहता मेड़ता सिटी दूरभाष : 01590-220135

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