Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 75
________________ ५४. आभास मेरे भगवन मेरे आत्मन अनन्त प्रभु की अनन्त ज्योति मेरे अन्दर अवतरित हो रही है, हे मेरे आत्म भगवन् तेरे सनातन रूप परम विभु का दर्शन करमैं आनन्द मगन हो रहा हूँ आनन्द की ऊर्ध्व स्वर लहरियां मेरे हृदय से इस प्रकार उठ रही है मानों वातायनों से मधुर वायुशरद की सुहानी पूर्णिमा में हिलोरें ले रही हो मेरे अनन्त घन आनन्द, तेरे ही अनन्त आनन्द का अमृत पान कर मैं अति आनन्दित हो रहा हूँ। जब तू मेरे हृदय में होता है मेरी गति ही कुछ और होती है एक ऊर्ध्व स्वर चलता रहता है प्रतिपल एक घंटी सुनाई देती है जिससे अनहद नाद का स्वर गम्भीर से गम्भीरतर होता जाता है। हे मेरे प्रभो! हे मेरे प्रभो! 74

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