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६४. आरती
मेरे प्रभु की आरती है राज रही
चेतना में ज्ञान भेरी बज रही ।
विषय और कषाय का अवसान आया कर्म-करणी पर ज्ञान और विज्ञान छाया । अनन्त की इस भाव भीनी अर्चना को विश्व की इस शान्त शुभ सर्जना को । मेरे अनन्त प्रणाम, मेरे अनन्त प्रणाम । शान्ति की शुभ भावना को,
मेरे अनन्त प्रणाम !
मेरे हृदय गगन में आनन्द की बंशी बजी
विज्ञान भैरवी की सुरीली अप्सराएँ हैं सजी । चढ़ेगी कर्म बादल पर ज्ञान और विज्ञान बनकर । करेगी चूर कर्मों को आतम ज्ञान बनकर ।