Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 95
________________ ७४. अहं विसर्जन मै सो रहा था मेरा अहंकार जाग रहा था मैं खर्राटे भरने लगा अहंकार ने मुझ पर। एक चादर ओढ़ा दी। प्रमाद की अंधकार-और गहरा गया। अहंकार ने अपने मित्रों को बुलायाकाम को क्रोध को माया को लोभ को! अब ठहठहा कर हंसने लगे, खुशी से कुलांचे भरने लगे अहंकार ने अपनी जाजम बिछाई काम-क्रोध, माया-लोभ का जमघट छा गया। रातभर उछल-कूद करते रहे! प्रभात का समय आया प्राची में उषा का साम्राज्य छाया मंदिरों में घनन-धनन-घन घंटे बज उठेमेरे चित्त चैतन्य ने करवट लीप्रभु के कदमों की आहट हुईकाम-क्रोध-माया-लोभ सब तिलमिलाकर भाग उठेशुद्ध चैतन्य मेरे हृदय में छा गयासूरज की लालिमा दिशाओं में प्रसार पाने लगीहे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो! 94

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