Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 94
________________ ७३. जीवन देवी मेरे प्रभो! मेरे विभो! अनन्त की इस आराधना में जीवन की मधुर बंशी बज रही है अन्तर के हाथों जीवन देवी सज रही है। भाल पर प्रभु ध्यान रूपी इन्दीवर शोभायमान हो रहा है नासा पुट पर उड़ने वाले प्राण रूपी पंछी अखिल ब्रह्माण्ड से तादात्म्य स्थापित कर रहे हैं चन्द-चकोर की भांति चक्षु विश्व-प्रेम का पान कर रहे हैं प्रभु रूपी लालिमा युक्त होठ चहुँ ओर मुस्कान बिखेर रहे हैं आभरण युक्त कण्ठमाल वक्षस्थलों की देखभाल में लीन हैं उन्नत उरोज प्राणों की चढती-उतरती लहरों को देखने में मुग्ध हैं। कटि पर संयम रूपी केसरी सिंह दहाड़ रहा है, जिसकी गर्जन से कषाय रूपी कर्म कांप रहे हैं जंघा से ब्रह्म तप रूपी प्रभा निकल रही है, जिससे समस्त विश्व ज्योतिर्मय हो रहा है। पिण्डलियों से प्रभु की शक्ति झलक रही है जिनसे समस्त कार्य स्वयमेव होते जा रहे हैं, जीवन देवी के चरण कमलों की नख प्रभा से दिदिगन्त प्रकाशमान है जीवन देवी को शत्-शत् नमन। 93

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