Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 92
________________ ७१. नूपुर किंकण हे मेरे स्वामिन्! अनन्त अखिलेश परमात्म स्वरूप का अनहद नाद टंकारा बज रहा है; संपूर्ण ब्रह्मानन्द का निनाद मेरे श्रोतेन्द्रिय द्वारा ग्रहण किया जा रहा है। मेरे अनन्त अनन्त भगवन । तेरी ही कृपा के नूपुर किंकण सर्वत्र सुनाई दे रहे है। तेरा ही अनहद नाद गुंजायमान हो रहा है मेरी सूक्ष्म इन्द्रियाँ कभी-कभी इस अनहद नाद का रसास्वादन कर ही लेती है। और तबसंपूर्ण इन्द्रियाँ तेरे चरण कमलों में नतमस्तक हो उठती है। हो उठता है तेरा मेरा एकाकार सृष्टि और सृष्टा का एकाकार आत्म और परमात्म का एकाकार हे मेरे मन आनन्द घन।

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