Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 90
________________ ६९. अनन्त की खोज हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो ! हे मेरे आत्म भगवन् जीवन के अन्तर धन आनन्द की इन सुखद घड़ियों में अभिभूत है मेरा मन ! अनन्त को खोजने निकला साथ में लिया गुरू का सम्बल, प्रकाश में, अन्धकार में, जंगल में, बिद्यावान में सर्वत्र प्रभु का एक ही गुंजन | शान्त, महाशान्त, अन्तर शान्त, बाहर शान्त पंचदेव शान्त, शान्त ही शान्त सर्वत्र शान्त मेरे मन अनन्त-आनन्द घन, अखिलेश सदन ! हे मेरे प्रभो ! हे मेरे विभो ! 89

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