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६८. अनहद-नाद
हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो! अनन्त की अनंत ज्योति मेरे भीतर अवतरित हो रही है तेरे ज्योतिर्मय रूप का दर्शन कर- मैं आनन्दित हो उठा हूँ। वातायनों से शरत् की सुहानी वायु मेरे अंतर के कोने-कोने को सुवासित कर रही है तेरे अनंत आनंद का पान कर मैं आनंदित हो उठा हूँ जब तू मेरे हृदय में होता है अनहद नाद का स्वर गंभीर से गंभीरतम होता जाता है अनंत आनंद का अविरल झरना बहता रहता है तेरे अनंत स्वरूप का दर्शन प्रतिपल मेरे हृदय जगत में होता रहता है। उठ और उस परम ज्योति के दर्शन करले। अपने मन को अनंत आनंद से भर ले। हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!
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