Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 80
________________ ५९. माया-पिशाचिनी हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो! अनन्त की अनन्त साधना करते हुए प्राणों ने जीवन के स्पंदन का स्पर्श कियामानव जीवन को प्राप्त करते ही अनन्त का घंटा बज उठा अनहद नाद की स्वर लहरियाँ थिरकने लगी आत्मानन्द का संगीत गूंज उठा मानव जीवन को पाकर प्रभु का वरण करेंगे प्रभु के चरण स्पर्श करेंगे प्रभु में विलीन हो जायेंगे सोच ही रहा था कि माया रूपी पिशाचिनी ने आकर गोद में भर लिया, तब से अब तक माया की गोद में पड़ा हूँ मेरे प्रभो! मेरे विभो! मुझे माया के बंधन से विमुक्त कर अपने श्रीचरणों में स्थान दे दे हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!

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