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६१. साधना का कण्टक हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो! हे मेरे आत्मन! तू यश की कामना छोड़ छोटे-छोटे यश के वबंडर उड़कर तेरे आत्म रूपी धन को उड़ा ले जाते हैं आत्म-प्रवंचना, आत्म-छलना आत्म-श्लाघा, मान और अहंकार से दूर हट। ये साधना के कण्टक हैं। जो साधना-रूपी धन को जुड़ने नहीं देते। हे मेरे आत्मन्! यश की भावना को छोड़, अहं की भावना को छोड़, कंकड़-पत्थर में मत उलझ। संसार के मोहपाश में आबद्ध मत हो! हे मेरे आत्मन! मुझे मेरे प्रियतम से मिलने जाना है। शीघ्रता कर हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!