Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 81
________________ ६०. चिन्तामणी हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो! तेरे दरबार में प्यार और प्रेम का संगीत बिकता है प्रेम का सौदा हृदय के साथ होता है जो प्रभु चरणों में सब कुछ समर्पित कर सकता है वही प्रभ प्रेम का प्रसाद प्राप्त करता है हे मेरे प्रभो, हे मेरे आत्मदेव! प्रभु को प्राप्त करना है? प्रभु प्राप्ति का सौदा बहुत सस्ता है। इस मार्ग पर करना कुछ भी नहीं पड़ता है सिर्फ अपने को समर्पित कर देना पड़ता है शेष कार्य तो प्रभु स्वयं करते हैं हे मेरे आत्मदेव! इस सौदे को करलो प्रभु रूपी माल खरीद लो यह चिन्तामणी हेइस माल की कीमत अनन्त गुणी है लोगों को पता नहीं है इसलिये विश्व हाट मेंचिन्तामणी का खरीददार नहीं है विश्व व्यापार में, सब खरीदते हैं लोभ को, तृष्णा को, मोह को, राग को, द्वेष कोजिससे प्राप्त होता हैपरिताप, व्यथा, दु:ख, पीड़ा और संताप हे मेरे प्रभो! हे मेरे आत्मदेव! शीघ्रता कर, यह माल अनमोल है। अपनी सम्पूर्ण शक्तियाँ, प्रभु चरणों में समर्पित करदेयह सौदा खरीद ले मेरे प्रभो! मेरे विभो! मेरे आत्मदेव!!! 80

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