Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 73
________________ ५२. गीत गा प्रभु आ रहे हैं हृदय में छा रहे हैं घट में समा रहे हैं प्रभु आ रहे हैं अनन्त कीर्ति छा रही हैं रोमावलियाँ गा रही हैं रूप माधुरी नयनों में समा रही है प्रभु आ रहे हैं, मेरे मन गा, प्रभु गीत गा, बाँसुरी बजा, प्रेम वाद्य सजा मेरे मन गा, हँस-हँस के गा, हृदय हार सजा। 12

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