Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 71
________________ 70 ५०. प्रबल पुरूषार्थ मैं पैसे को बेचता हूँ, मैं जिम्मेदारियों को बेचता हूँ, मैं अपने सभी दुःखों को बेचता हूँ, मैं अपने सभी झंझटों को बेचता हूँ, मैं अपने पुरुषार्थ को भी बेचता हूँ, अर्थात् मैं संसार के लिए पुरुषार्थ लगाने की आवश्यकता नहीं समझता । मैं व्यापारी हूँ दुःखों को बेचता हूँ सुखों को खरीदता हूँ कंचन और कामिनी, पैसा और परिवार तो ढ़ेर सारे मिल जाते हैं परन्तु आत्म-सुख, संयम- सुख, चरित्र - सुख धर्म-सुख और मोक्ष - सुख ये सब अध्यवसाय, साधना और प्रबल पुरुषार्थ से ही मिल पाते हैं । इसलिये हे मेरे मन ! तू प्रबल पुरुषार्थ लगाकर आत्मसुख की प्राप्ति कर ।

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