Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 32
________________ ११. विराट विश्व हे मेरे प्रभो ! हे मेरे विभो ! विराट्र विश्व के कण-कण में प्रभु का सौन्दर्य छिपा है सर्वत्र प्रभु ही प्रभु विराजमान हैं कण-कण में पत्ते - पत्ते में प्रभु की सत्ता झलक रही है प्रभु विराट् विश्व के स्वामी मेरे अन्तर्यामी, तेरी ही कृपा से सागर तट से बंशी की आवाज आ रही है, चहुँ ओर सागर तट की लहरें गर्जन कर रही हैं दिशा विदिशा में माया से फुफकार भरती लहरें तर्जन कर रही हैं ऐसे में सागर तट से बंशी की सुरीली मधुर ध्वनि तेरा ही तो संगीत है जीवन के महासागर में माया की तरंगो के बीच की प्रभु यही मेरा सद्भाग्य है हे मेरे प्रभो ! हे मेरे विभो ! सुमधुर ध्वनि सुनाई दे जाती है। 31

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