Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 38
________________ १७. शाश्वत विजय हे मेरे प्रभो! हे मेरे विश्नो! प्रभु ने हमें सृष्टि पर अनन्त की आराधना करने भेजा हैअनन्त की आराधना में युग-युगों से पृथ्वीपुत्र रत हैंसमय-समय पर काल भैरवी बजती है चित्त रूपी रण क्षेत्र में कर्म रूपी युद्ध छिड़ता है पाशविक वृत्तियों का नाश होकर सात्त्विक वृत्तियों की विजय होती है। मानव की शाश्वत विजय यही विजय मानव जाति के इतिहास के पृष्ठों को बदलती है दृश्य पर अदृश्य की विजय दानवता पर मानवता की विजय पशुता पर सात्त्विकता की विजय यही युद्ध विश्व का सर्वोपरि युद्ध है मेरे अन्तर में चलने वाले इस युद्ध में शाश्वत शक्तियों की विजय दुन्दुभि सुनने को मैं कब से आतुर हूँ कान लगाये बैठा हूँ हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो! 37

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