Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 50
________________ २९. मदनोत्सव मेरे प्रभो ! मेरे विभो ! तुझमें यह विराट विश्व समाया हुआ है इस विराट विश्व का कण-कण तेरी ही चेतना से मुखरित हो उठा है तेरी ही चेतना विराट विश्व में, नव जीवन का संचार कर रही है। कण-कण में तेरी ही चेतना चमक रही है जीवन के चिन्मय प्रांगण में तेरी ही ज्योत्स्ना छा रही हैं, मेरा जीवन तेरी सृष्टि के कण-कण से अमृत की प्राप्ति कर रहा है आनन्द और अमीरस झर रहा है रूपी वायु के झोंकों ने जीवन की प्रभु समस्त मलिनता का प्रक्षालन कर दिया है, मेरे आनन्दघन प्रभो तेरी ही से कृपा कण-कण में आनन्द और उल्लास छाया है मैं तेरे साथ आनन्दोत्सव मनाने आया हूँ इस मदनोत्सव में तू मेरे साथ हैं। हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो ! 49

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