Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 60
________________ ३९. नन्दनवन मेरे मन ! मुझे ले चल कहाँ? नन्दनवन ! जहाँ मेरे प्रभु सो रहे हैं आनन्द में खो रहे हैं सुरीली बांसुरी बज रही है मधेस रही है जो चाहे मांग ले वासनाएँ त्याग दे आज चैतन्य जनत का भोर हुआ मेरा मन आत्म विभोर हुआ अनन्त आरती बज रही अप्सराएं सज रही प्रभु दरबार का उत्सव सजा अनंत का बाजा बजा कर्म सब टूट गये वासनाओं से छूट गये मेरे प्रभो ! मुझे ज्ञान का दान दे ! तेरा ही हूँ, तेरा ही रहूँ, वरदान दे ! 59

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