Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 63
________________ ४२. सृष्टि प्रभु की यह सृष्टि कितनी सुन्दर है! शीतल मन्द सुगन्धित समीर बह रही है पेड़ों की टहनियाँ झूम-झूम कर कह रही हैं कितनी सुन्दर है- यह सृष्टि! तेरा जीवन इस अनुपम सृष्टि का सुन्दर अंग है कण-कण से सौन्दर्य मुखरित हो रहा है स्नेह एवं प्रेम का संगीत बह रहा है सुमनों से सौरभ महक रहा है ऐसे में प्रभु आये आशीर्वचन कह कर चले गये।। जीवन उपवन का उद्यान फूलों और फलों से लदा रहे। अन्तर के उपवन में अमीरस का स्त्रोत बहता रहे।।

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