Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 67
________________ 66 ४६. निर्वाण -पथ हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो ! प्रभु की इस अनन्त सृष्टि में समस्त जीव, चराचर प्राणी, अपने गन्तव्य परम सुख, अनन्त ज्योति, अखिलेश प्रभु, की ओर आगे बढ़ रहे हैं सम्पूर्ण सृष्टि उस अजर-अमर अखिलेश के श्रीचरणों में सिर झुका कर अपने निर्वाण पथ पर अग्रसर हो रही है । मेरे प्रभो ! मेरे विभो ! आप ही समस्त आत्माओं के प्रकाश-दीप हो ज्योति स्तम्भ हो आनन्द-प्रदाता हो ज्ञान ज्योति दाता हो मेरे अखिलेश ! तुमको कोटि-कोटि प्रणाम !

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