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४६. निर्वाण -पथ
हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो !
प्रभु की इस अनन्त सृष्टि में
समस्त जीव, चराचर प्राणी, अपने गन्तव्य
परम सुख, अनन्त ज्योति, अखिलेश प्रभु, की ओर आगे बढ़ रहे हैं
सम्पूर्ण सृष्टि उस अजर-अमर अखिलेश के श्रीचरणों में सिर झुका कर
अपने निर्वाण पथ पर
अग्रसर हो रही है ।
मेरे प्रभो ! मेरे विभो !
आप ही समस्त आत्माओं के
प्रकाश-दीप हो
ज्योति स्तम्भ हो
आनन्द-प्रदाता हो
ज्ञान ज्योति दाता हो
मेरे अखिलेश ! तुमको कोटि-कोटि प्रणाम !