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४५. संयम सुन्दर है
हे मेरे प्रभो ! हे मेरे विभो !
संयम सुन्दर है, अतीव सुन्दर है,
प्रभु की मिलन-स्थली है
अन्तरतम की
समस्त कर्म काँप रहे हैं
संसार रूपी जंगल के सभी प्राणी
संयम रूपी सिंह की दहाड़ से
कम्पायमान हो रहे हैं
गुहा में संयम रूपी सिंह सो रहा है
सुध-बुध और चेतना खो रहे हैं संयम अतीव सुन्दर है
प्रभु के प्रासाद की पगडण्डी हैं।
जहाँ समस्त दु:ख, समस्त अज्ञान
प्रभु
के एक निमेष से
अन्तर्धान हो जाते हैं
हे मेरे मन !
संयम को हृदय में धारण कर
वहीं तो तुझे परम पिता परमात्मा के दर्शन होंगे
वहीं तुझे अनन्त अखिलेश आत्मा के
चिरन्तन रूप के दर्शन होंगे ।
हे मेरे प्रभो ! हे मेरे विभो !
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