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४४. अनन्त का स्वागत
हे मेरे प्रभो, हे मेरे विभो !
तू मेरे अत्यन्त निकट है
पलक झपकते ही मैं,
तुझ रूप बन जाता हूँ.
तू ही मुझ में भासने लगता है यह क्रिया क्षण भर में हो जाती है ।
प्रभु आपका स्मरण ही अन्तर्चेतना को
ऊपर ले जा सकने में समर्थ है मेरे प्रभो, मेरे विभो
उस अनन्त के स्वागत की अपने में
क्षण-क्षण तैयारी कर रहा हूँ प्रभु किसी भी क्षण आ जाये तो अपने में समा लूँ।