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४१. प्रभु प्राप्ति हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो! अनन्तानन्त काल से यह आत्मा प्रभु को पाने हेतु लालायित है यह मानव जीवन रूपी अवसर मिला है जिसमें पुरूषार्थ कर प्रभु की भक्ति कर ले। मेरे मनअनन्तानन्त बाधाओं को पार कर समस्त शक्तियों को प्रभु आराधना में लीन कर दे तेरे समग्र कार्य स्वयमेव हो जायेंगे। हे मेरे मनपरिवार-धन-जन की चिन्ता छोड़ सर्वस्व प्रभु चरणों में समर्पित कर दे प्रभु स्वयमेव परिवार की रक्षा करेंगे। तुम पर उनका भार नहीं है। हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!
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