Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 49
________________ २८. आँख मिचौनी प्रभु आ रहे हैं मुझ में समा रहे हैं प्रभु अवतरित हुए धूप के रूप में आम की छाँव में प्रकृति की गोद में हृदय की ओट में प्रभु आँख-मिचौनी करने लगे मुझे हृदय में भरने लगे आनन्द है बढ़ रहा पाप पुंज घट रहा अनन्त के द्वार खुलने लगे अमर्ष सब घुलने लगे आनन्द का राज्य छा गया हृदय का साम्राज्य आ गया 48

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