Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 47
________________ किन २६. मृग मेरे मन, आनन्दघन अनन्त आनन्द का शुभ प्रकाश चहुँ ओर फैल रहा है, मेरे मन में तू ही खेल रहा है। अनन्त आनन्द की बांसुरी नित बज रही है प्रभु की मूर्ति घर आंगन में सज रही है अनन्त अखिलेश साधना का स्वर चल रहा हैमन मन्दिर में घनन घन रव बज रहा है मेरे प्रभो! मेरे विभो! 46

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