Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ २४. प्रतिपालन हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो! अनन्त आनन्दघन परमात्मा परम पिता परमेश्वर हे मेरे भगवन् मैं आपका ही तो हूँसम्पूर्ण संसार में दृष्टि उठाकर देखता हूँ तो सिवा आपके कुछ भी नहीं हैंइस जीवन मेंक्षण-क्षण आपने ही मेरी प्रतिपालना की है अभी भी कर रहे हैं मेरा सुदृढ़ विश्वास है-आगे भी करते रहेंगेअनन्त की आराधना में आपने जो शक्ति प्रदान की है - इसके लिए मैं आपका ऋणी हैं धन्यवाद - कैसे हूँ? आप तो अपने ही हैंऔर अपनों को धन्यवाद देने की प्रथा नहीं है। हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो! 44

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98