Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 46
________________ २५. उषा की बेला हे प्रभो! हे विभो! मेरे आनन्दघन, परमानन्द स्वरूप प्रभो मेरे अन्तरमन में आप विराजमान हैं, आपके श्रीचरणों में मेरा ध्यान है, मेरे आनन्दघन प्रभोउषा की बेला निकट हैगहनतम अन्धकार में उषा की किरणें फूटने लगी हैंप्राची में अरुणिमा छाने लगी हैज्योतिर्मय नक्षत्र का उदय हो रहा है विहगावलि-गाने लगी है शीघ्र ही भगवान् भास्कर गगन मण्डल में आने वाले हैं मेरे आनन्दघन प्रभो! हृदय में आनन्द अठखेलियाँ कर रहा है होठों से मुस्कान बिखेर रहा हैआँखों से प्रेम बरस रहा है, ललाट से पराग झर रहा है। केशों की लटों से श्रम का स्वेद बिन्दु गिर रहा हैऐसे में प्रभु आये और एक झलक दिखाकर चले गये नहीं, नहीं मेरे नाथ! यहाँ स्थिरवास करो हे मेरे आनन्दघन प्रभो 45

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