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३०. दक्षिणेश्वर से उत्तरेश्वर मेरे प्रभो! मेरे विभो! अब मैं तेरी सूक्ष्म शक्तियों सहित दक्षिणेश्वर से उत्तरेश्वर को जा रहा हूँ क्षण-क्षण प्रतिपल तू मेरे साथ है इस यात्रा में मैंने, धन कमाने को, सम्पर्क बनाने को, संसार बढ़ाने को कम किया है प्रभु उस रिक्तता को मैंने तुमसे भरा है। अहा! कितना आनन्द है तेरा सान्निध्य पाने में ज्यों-ज्यों जगह खाली होती जा रही है त्यों-त्यों त उस जगह को तेरे मधुर प्रकाश से भर रहा है तेरे प्रति मेरी मधुर स्मृति सघन होती जा रही है। हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!
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