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१६. समग्र चेतना मेरे प्रभो! मेरे विभो! मानव की समग्र चेतना अभिमुख हो उठी है अनन्त के अनन्त रहस्यों के प्रकाशित होने का समय आ गया है। मेरे आनन्दघन विभो! अन्दर छिपी अनन्तशक्ति को प्रकट करो। तप से, तेज से, ओज से, प्रेम से, आनन्द से, प्रकाश से, अनन्त ज्योति से, अन्तर घट वरो अनन्त की अनन्त सत्ता मेरे हृदय में स्थापित करो मेरे नाथ-मेरे स्वामी-मेरे आनन्दधन प्रभो! सम्पूर्ण विश्व के अन्तर्यामी तेरी ही चरण माधुरी का गान करते मेरा अन्तर, उज्ज्वल आलोक से भर गया हैस्फूर्ति और आनन्द पैदा कर गया है अब मैं तुझसे मिलकर भाव विभोर हूँ मेरी सुधि लेने हर घड़ी आप आया करो मुझे ज्ञान देकर ज्ञानानन्द से छकाया करो हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!