________________
१९. ठगा सा रह गया मेरे आनन्दधन प्रभो! तेरे ही प्यार और प्रेम से यह जीवन चल रहा है। अन्य कुछ भी करने की क्षमता मुझमें नहीं है मैं तेरे प्यार में पागल हो उठा हूँ कुछ भी करने की सुध-बुध नहीं है। सभी कुछ तो तुझे समर्पित कर चुका हूँ मेरा अस्तित्व अब समाप्त होता जा रहा है अब मुझ में तू ही तू प्रकट हो रहा हैहे मेरे देव! आनन्दघन प्रभो! संध्या की वेला निकट है मेरे हाथ-पैर जर्जरित हो चुके हैं रात्रि की गहन नीरवता छा रही है ऐसे में प्रभु तुम आए
और मेरा हाथ थाम लिया मुझ गिरते को बचा लिया तू ही मेरा प्रकाश दीप है अन्धकार में आलोक है मैं तेरा हाथ पकड़ कर चल रहा हूँ
लो
प्राची में लाली फूट पड़ी है उषा गुलाबी परिधान पहन कर खड़ी है मैं तेरी छवि को निहारता ठगा सा खड़ा रह गया।
20