Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 41
________________ 40 २०. बलिदान आत्मा की ऊर्जस्विता के लिए, बलिदान भी हो जाये तो कोई हानि नहीं हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो ! हे मेरे भगवन् ! अनन्त की अनन्त आराधना करते हुए यदि कोई बलिदान भी करना पड़े अर्थात् संसार, सांसारिक सुख, पारिवारिक मोह, धन-दौलत नाम, यश, कीर्ति एवं ईर्ष्या इन सब की समाप्ति हेतु बलिदान भी करना पड़े तो खुशी खुशी कर देना चाहिए । हे मेरे प्रभो ! हे मेरे विभो ! मेरे आनन्दघन !

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