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२०. बलिदान
आत्मा की ऊर्जस्विता के लिए,
बलिदान भी हो जाये
तो कोई हानि नहीं
हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो ! हे मेरे भगवन् ! अनन्त की अनन्त आराधना करते हुए
यदि कोई बलिदान भी करना पड़े
अर्थात्
संसार, सांसारिक सुख, पारिवारिक मोह, धन-दौलत
नाम, यश, कीर्ति एवं ईर्ष्या
इन सब की समाप्ति हेतु
बलिदान भी करना पड़े तो
खुशी खुशी
कर देना चाहिए ।
हे मेरे प्रभो ! हे मेरे विभो ! मेरे आनन्दघन !