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२१. पदचाप
मेरे अनन्त घन आनन्द
चहुँ ओर शान्ति का नीरव वातावरण
छाया हुआ है
ऐसे में किसी के पदचाप गहरे और
गहरे होते चले जा रहे हैं
मैं विरह के गीत गा रहा हूँ
हृदय विराट के दर्शन को आतुर हैं
हृदय के कोने-कोने में प्रकाश व्याप्त हो चुका है।
मैं अनन्त प्रकाश के ज्योतिर्मय पुंज में
अपने को पवित्र कर रहा हूँ ।
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