Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ ९. सत् चित् आनन्द अनन्त आनंद की ऊर्मियाँ गा रही हैं प्रभु चरणों में अपने को लगा रही हैं सत्-चित् आनंद हृदय में समा गया है आनंद ही आनंद चहुँ ओर छा गया है अनंत आनंद की बांसुरी बज उठी, विपुल शक्तियाँ हृदय में सज उठी, सूक्ष्म शक्तियों का अंबार है लगा, प्रभु चरण शरण में मन है जगा, ज्ञान सर्वत्र छा रहा है, प्रभु चरणों को पा रहा है। जगत और प्राण के सृष्टि नवविहान के तार सब खुल गये - कषाय सब धुल गये - अनंत आनंद का साम्राज्य छाया - व्यष्टि और सृष्टि का भेद पाया सर्वत्र-ज्ञान-ज्योति प्रकाशित हो रहीऊषा और आलोक की प्राप्ति हो रही - मैं और मेरे का भेद मिट चला तूं मेरा और मैं तेरा हो चला।

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98