Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 33
________________ १२. प्रतिबिम्ब हे मेरे प्रभो, हे मेरे विभो, ताराच्छादित गगन के शुभ प्रकाश में नीचे देखा तो जलाशय कितना मनोहर लग रहा था निर्मल व शान्त जल में द्वितीया का चन्द्र अठखेलियाँ कर रहा था। एकाएक नजर ऊपर उठी तो चन्द्र कहीं दिखलाई नहीं दिया झाड़ियों की ओट में उसने अपने आप को छ्या लिया। मैं विस्मित होकर सोचने लगा इसी प्रकार तो प्रभु अपने आप को छुपा कर रखते हैं पर पवित्र आत्माएं अपने शान्त व पवित्र हृदय रूपी सरोवर में प्रभु का प्रतिबिम्ब उतार ही लेते हैं अत: हे मेरे आत्मन् अपने हृदय रूपी सरोवर को पवित्र व शान्त रख, जिससे कि स्वयं में ही पतिबिमबित. प्रभु रूपी शुभचन्द्र का रसास्वादन किया जा सके। हे मेरे प्रभो, हे मेरे विभो। 32

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