Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 29
________________ ८. कुहु की टेर हे मेरे प्रभो, हे मेरे विभो! मेरे अन्तर में अनन्तज्ञान/विकसित हो रहा है प्रभु का अनन्त प्रकाश प्रस्फुटित हो रहा है! स्वच्छ शुद्ध सरित् प्रवाह अठखेलियाँ कर रहा है, पक्षी केलि कर रहे हैं। विहंगम उड़ान भर रहे हैं उपवन में कोयल कुहु-कुहु की टेर लगाकर पूछ रही है प्रभु कहाँ हैं? अनन्त हरित राशि प्रभु के प्रति झूम-झूम कर आस्था प्रगट कर रही है, सूर्य का बिम्ब-प्रतिबिम्ब अथाह जलराशि पर गिरकर ज्योतिर्मय आभा प्रकट कर रहा है मेरे मन कानन में प्रभु का बिम्ब प्रतिबिम्बित हो रहा है हे मेरे प्रभो, हे मेरे विभो! 28

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