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४. नियति-नटी हे मेरे प्रभो, हे मेरे विभो!
आनन्द की इस उजागर वेला में हृदतंत्री के तार झंकृत हो उठे हैं सुरभि की स्वर लहरी पर नियति नटी थिरक रही है मेधा के अमृत कुण्ड पर अनन्त की बूंदें बरस रही हैं घनघोर गर्जना से तू जाग और हुंकार भर दे अपने परम पुरुषत्व को जगा दे और उसमें अमृत्व भर दे प्रिय! उषा की वेला निकट है तनिक अपना श्रृंगार करले! सदाबहार के फूलों को अंक में भर ले झुककर प्रभु के दर्शन करले यही निधि है यही अमृत्व है मेरे प्रियतम! मुझे अखंड आनंद में निवास करने दे हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!