Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 23
________________ २. मुक्त गगन पूर्व की ओर से कुछ विहंगममुक्त गगन में उड़ान भरते हुए आ रहे हैं। मेरा मन पूर्व की ओर उड़ानभरने को उत्सुक है हृदय की समस्त कोमलताओं मन की समस्त सरसताओं और आत्मा की समस्त उपलब्धियों के रस से जीवन को अभिसिंचित कर अनन्त आनन्द को प्राप्त कर लूँ मुक्त गगन में चिड़ियों की उड़ान, कितनी आनन्ददायी होती है मेरी आत्मा की उड़ान भीकितनी आलादमयी होगी, पूर्व की ओर, प्रकाश की ओर मेरा आत्म-विहग कब सेउड़ान भरने को समुत्सुक है। मेरे प्रभो! मेरे विभो!

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