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१. विराट के दर्शन हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो! पेड़ की ऊँची टहनी पर चढ़कर
अन्तरिक्ष की ओर निहार रहा था कि विराट के दर्शन हो गये
अन्तहीन श्री व सौन्दर्य मेरे अन्तर में समा गये अनन्त की सीमा, अनन्त में विलीन होती दिखाई दी अनन्त के कण-कण में निहित अनन्त सत्ता के दर्शन हुए सृष्टि रूपी अन्तरिक्ष में विराट के दर्शन करते हुए अर्हदय के अन्तरिक्ष मेंप्रभु के दर्शन हुएमैं मुन्ध हो गया श्री, शोभा व सौन्दर्य में खो गया विराट की विराटता में समा गया। मेरा अस्तित्त्व विला गया अब मैं और मेरे का कहीं अता-पता नहीं सर्वत्र तेरा ही साम्राज्य है मेरे अन्दर और बाहर सर्वत्र तू ही विराजमान है तेरी ही सार्वभौम सत्ता के दर्शन कर मैं तुझ में एकाकार हो गया हूँ हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!