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अनेकान्त 67/1, जनवरी-मार्च 2014 की सत्ता सिद्ध होती है।६२ इसका लक्षणा वर्तना है- 'वर्तनालक्षणः कालः।'६३
काल द्रव्य अन्य द्रव्यों के समान असंख्यातप्रदेशी या अनन्तप्रदेशी नही है, अपितु लोकाकाश के जितने प्रदेश हैं उतने काल द्रव्य हैं। प्रत्येक काल द्रव्य लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर स्थित है। काल द्रव्य अनन्त समय पर्याय वाला है। अनन्त समय का निर्देश व्यवहार काल का है। वर्तमान काल एक समय का है पर भूत एवं भविष्यत् काल अनन्त समय वाले हैं। अथवा मुख्य ही कालाणु अनन्त पर्यायों की वर्तना में कारण होने से अनन्त कहा जाता है। अतिसूक्ष्म अविभागी कालांश को समय कहते हैं।
काल द्रव्य में मुख्य या उपचार से प्रदेश प्रचय की कल्पना नहीं बनती है, इसलिए वह अकाय है और धर्मादि द्रव्यों के प्रदेश के समान असंख्यात प्रदेशी है। कालाणु एक-एक प्रदेश पर रत्नों की राशि के समान विद्यमान है।६५ ये परमाणु रूपादि गुणों से रहित अरूपी हैं। काल द्रव्य के गुण :
आचार्य विद्यानन्दि स्वामी ने काल द्रव्य के गुणों का वर्णन करते हुए कहा है
'निःशेष द्रव्यसंयोगविभागादिगुणाश्रयः। कालः सामान्यतः सिद्धः सूक्ष्मत्वाद्याश्रयो भिदा। क्रमवृत्तिपदार्थानां वृत्तिकारणतादयः।
पर्यायाः सन्ति कालस्य गुणपर्यायवानतः।। ६६ अर्थात् सामान्य रूप से सभी द्रव्यों के साथ संयोग होना या विभाग होना एवं संख्या, परिमाण आदि गुणों का आश्रय होना काल द्रव्य को सिद्ध करता है। विशेष रूप से कथन करने पर सूक्ष्मत्व, वर्तनाहेतुत्व, अचेतनत्व, अरूपित्व आदि गुणों का आधार काल द्रव्य है। क्रमशः वर्तन कर रहे पदार्थों की वर्तना कराने में कारणपना अर्थात् पदार्थ को जीर्ण-शीर्ण करना तथा स्वयं अचेतन बने रहना काल द्रव्य की पर्यायें हैं। काल द्रव्य के कार्य :
वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व ये काल द्रव्य के उपकार या कार्य हैं।६७ धर्मादिक द्रव्य जब स्वयं अपनी नवीन पर्याय में प्रवृत्त होते हैं,